जिन्दगी
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मैं जब भी जिंदगी से हताश हो जाती हूँ
तो उस अँधेरे में बेबस अपनी हथेलियाँ
टटोलती हूँ –
उस पर पड़ी आड़ी-टेड़ी रेखाओं में
तलाशती हूँ अपना भाग्य
कि अब क्या होगा ?
मैं जानती हूँ कि हथेलियों की रेखा नहीं,
हाथ की ताकत आदमी की तकदीर बदलती है |
मगर फिर भी हाथ पर नहीं,
हथेलियों की रेखाओं पर मुझे ज्यादा विश्वास है –
कि अब क्या होगा ?
-कान्ता गोगिया
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