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ग़ज़ल

जिन्दगी
जिन्दगी
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अपनों से मिले जख्मों को हम दिखाएँ क्यों ?
कम उम्र में पड़ी जिंदगी की किताब हम सुनाएँ क्यों ?
हर चेहरे पर बिखरी हैं खूब उदासी की तस्वीरें,
अपना दर्दो-गम किसी को सुना हम रूलायें क्यों ?
आईने में अपना चेहरा पहचाना नहीं जाता,
वक़्त का आईना दिखा किसी को हम डराएँ क्यों ?
जिंदगी की हर बाज़ी बेशक हम हार चुके ,
जिंदगी मिटा कर मौत को हम जितायें क्यों ?

कान्ता गोगिया

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