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दीप जलाओ ना !

जिन्दगी
जिन्दगी
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कोई दीप जलाओ ना
कोई प्रीत निभाओ ना !

मन चंचल है अब तो
कोई आस बंधाओ ना |
एक सागर गहरा है
और दूर अँधेरा है
कभी होंठ हिलाओ ना
कभी तुम मुस्कराओ ना
कोई दीप जलाओ ना |

मन तुझ बिन पागल है
तू प्यार का बादल है
कोई पींग बढ़ाओ ना
इस तरह रुलाओ ना
तुम मेरा मुक़दर हो
यह तुम बतलाओ ना
कोई दीप जलाओ ना|

देर बहुत हुई ……………..
अब सामने आओ ना
अब मेरी उम्मीदों का
गुलशन महकाओ ना
कोई दीप जलाओ ना
कोई प्रीत निभाओ ना !

– कान्ता गोगिया

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