जिन्दगी
- 70 Posts
- 50 Comments
कोई दीप जलाओ ना
कोई प्रीत निभाओ ना !
मन चंचल है अब तो
कोई आस बंधाओ ना |
एक सागर गहरा है
और दूर अँधेरा है
कभी होंठ हिलाओ ना
कभी तुम मुस्कराओ ना
कोई दीप जलाओ ना |
मन तुझ बिन पागल है
तू प्यार का बादल है
कोई पींग बढ़ाओ ना
इस तरह रुलाओ ना
तुम मेरा मुक़दर हो
यह तुम बतलाओ ना
कोई दीप जलाओ ना|
देर बहुत हुई ……………..
अब सामने आओ ना
अब मेरी उम्मीदों का
गुलशन महकाओ ना
कोई दीप जलाओ ना
कोई प्रीत निभाओ ना !
– कान्ता गोगिया
Read Comments