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मेरी जिंदगी

जिन्दगी
जिन्दगी
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वेदना बिना जिंदगी को
क्या जिंदगी कहें –
जहाँ तीक्षण शूल न हों |
उस आदमी को भी क्या आदमी कहें-
जिसकी जिंदगी में भूल न हो |
इसलिए मेरे दोस्त –
मेरी जिंदगी एक तीक्षण शूल है,
संशोधन नहीं कर सकने वाली भूल ही भूल है |
समतल भूमि को भी क्या
समुन्दर कहें-
जहाँ पर्वत और झरना नहीं |
उस जलन को भी क्या जलन कहें –
जहाँ आग, अंगार और राख नहीं
इसलिए मेरे दोस्त –
मेरी जिंदगी आरोहण नहीं कर सकने वाला
झरना है
मुझे तो आग, अंगार और राख में ही रहना है,
इसी को जिंदगी की सत्यता कहना है |

– कान्ता गोगिया

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