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ईमान गंदा हुआ …..

जिन्दगी
जिन्दगी
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प्यार भी इस जहाँ में, अब धंधा हुआ,
हुस्न बहरा हुआ, इश्क़ अँधा हुआ |
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मजनू, महिवाल, शेरां के इस मुल्क में,
क्या बताएं – ईमान कितना गंदा हुआ |
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बेकसी क्यों नहीं है, वो शमां में अब,
क्यों जुनूं तेरा – परवाने, मंदा हुआ |
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रिश्ता-ए-दिल समझता नहीं कोई अब,
रिश्ता-ए-जिस्म, उल्फत का फंदा हुआ |
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है यह सच- तुमको शायद मंज़ूर नहीं,
हर कोई है किसी न किसी से तो बंधा हुआ |
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– कान्ता गोगिया

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